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Last Updated: 2014/09/01
Summary of question
क्या दुसरे धर्मों द्वारा इन्सान कमाल और उत्तमता तक पहुँच सकता है? और तौहीद तक कैसे पहुंचा जासकता है ?
question
क्या दुसरे धर्मों द्वारा इन्सान कमाल और उत्तमता तक पहुँच सकता है? और तौहीद तक कैसे पहुंचा जासकता है ?
Concise answer
मौजूदा धर्मों में अगरचे थोड़ी बहुत सच्चाई दिखाई देती है लेकिन सच्चाई का  सम्पूर्ण रूप यानि तौहीद अपने सही माना में  इस्लाम में ही दिखाई देती है. इस बात की सब सी बड़ी दलील व प्रमाण यह है कि इन धर्मों की कोई मोतबर व मान्य सनद नहीं है और इन की धार्मिक किताबों में विकृती और छेड़ छाड़ हुई है और उनकी बातें भी बुद्धि और अक्ल के विपरीत हैं. जबकि क़ुआन विकृती से दूर है और उसके दस्तावेज़ मान्य और इतिहास मोतबर है, इस्लाम धर्म की व्यापकता और इसकी शिक्षाएं भी बुद्धि एवं  अक्ल के अनुसार हैं.   
Detailed Answer
 इस जवाब को और ज़्यादा समझने के लिए पहले ये प्रमाण देना ज़रूरी है की दुनिया में मौजूद दुसरे धर्म मौजूदा समय के अनुकूल नहीं हैं और इस्लाम तमाम धर्मों से श्रेष्ठ और सब से उचित है.

१. दुसरे धर्मों को असिद्धि व कमी के प्रमाण (इस्लाम के अलावा):
इन प्रमाणों को बताने से पहले दो चीज़ों को बताना ज़रूरी है.
 पहली बात: हमारा मतलब यह नहीं है कि दुसरे सारे धर्मों की शिक्षाएं निराधार और ग़लत हैं और उन में कोई सच्चाइ है ही नहीं. बल्कि हमारा मतलब यह है की मौजूदा धर्मों की कुछ बातें स्वीकारयोग्य नहीं हैं और ये धर्म सच्चाई को सही रूप से नहीं बता सकते हैं.
दूसरी बात: यह कि हम इस मुख़्तसर सी आलोचना में दुनिया के दो अहम धर्मों ईसाइयत और यहूदियत की अयोग्यता की तरफ़ इशारा करेंगे और उस तरह उन धर्मों की अहमियत, स्वीकार्यता और मकबूलियत भी मालूम होजाएगी जो इनसे कम और नीचे हैं:
 १. इन्जील की सनद क्रमिक,मुतावातिर और यकीनी नहीं है.
हजरत ईसा (अ) बनी इसराइल से थे, उनकी भाषा इब्री थी और उन्हों ने बैतूल मुक़द्दस से अपनी नबी होने का एलान और दावा किया था.वहां के लोग भी इब्री थे जिन में से कुछ लोग ही उनपर ईमान लाये जिनके बारे में हमें मालूमात नही है.  लेकिन बैतूल मुक़द्दस के कुछ लोग जो यूनानी भाषा भी जानते थे एशिया माइनर के शहरों की तरफ़ चले गए और लोगों को ईसा मसीह के धर्म की तरफ बुलाने लगे. और यूनानी भाषा में किताबें लिखीं और उनमें कुछ बातें लिख कर लोगों से कहा कि: ईसा ने ऐसा ही कहा है. वह लोग जिन्हों ने ईसा मसीह और उनकी बातों और कामों को सुना व  देखा था और उनकी भाषा जानते थे वह फिलिस्तीन में थे और उन लोगों ने उनकी नबुव्वत को कबूल नहीं किया था. वह लोग यूनानी भाषा में लिखी हुई बातों को मनगढंत मानते हैं. और जिन लोगों ने इन किताबों और बातो को माना वो दूर के लोग थे न उन्हों ने कभी बैतूल मुक़द्दस को देखा था ना ईसा मसीह को और ना ही  उनकी भाषा जानते थे. अगर इंजील में लिखी बातें झूटी भी होतीं तो ना लिखने वाला उसको लिखने से रुकता और ना ही सुनने वाला उनको झुटलाता था. मिसाल के तौर पर इन्जील मत्ता में आया है कि जब ईसा मसीह का जन्म हुआ तो कुछ मजूसी पूर्व की तरफ़ से आये और पुछा कि यहूदियों का बादशाह जो अभी पैदा हुआ है वो कहाँ है? हमने पूर्व में उसके सितारे को देखा है. उन्हों ने उन लोगो को बच्चा नहीं दिखाया लेकिन अचानक आसमान में एक  सितारा देखा जो चल कर उस घर के उपर आ कर रुका जिस घर में ईसा मसीह थे जिससे उन को पता चल गया कि ईसा मसीह ईसी घर में हैं. इस तरह की गढ़ी हुई बातें इन्जील में लिखी गई  हैं और लिखने वालों को इस की रुसवाई की भी परवाह नहीं थी क्यों कि  उन्हों ने ये बातें इब्री ज़बान में बैतुल्मुक़द्दस में रहने वालों के लिए नहीं लिखी थीं बल्कि अजनबियों के लिए लिखी थीं. और उन अजनबियों से बहुत से बहुत बढ़ा चढ़ा कर झूट बोला था. क्यूंकि हमें यक़ीन है कि कोई  भी  नुजुमी यह नहीं मानता कि किसी के जन्म के साथ एक सितारा भी पैदा होता है जो उसी की उपर चलता रहता है, इस बात को ना मजूसी मानते हैं  और ना ही ग़ैर मजूसी. यह भी बताते चलें के पुराने ज़माने के इसाईओं में हज़रते ईसा मसीह के क़त्ल के बारे में भी इख्तेलाफ़ है. इन्जील के कुछ नुस्खों में लिखा है कि हज़रत मसीह का क़त्ल हुआ ही नहीं था, जब कि अगर किसी शहर में किसी का क़त्ल होता है तो यह बात किसी से छिपती नहीं है खास तौर पर जब किसी को सूली दी जाती है. तो चूँकि इन्जील लिखने वालों ने यह इन्जीलें ऐसे लोगो के लिए लिखी थीं जो बैतूलमुक़द्दस के नहीं थे और और यह उन्ही की ज़बान में थी उन्हें यह पता ही नहीं था कि ईसा का कत्ल हुआ है या नहीं. इसलिए लिखने वालों ने पूरे इत्मीनान से जो चाहा वो लिखा. हजरत ईसा मसीह के तीन सौ साल बाद  ईसाई धर्म गुरुओं ने एक कमेटी बनाई जिसमें सलाह मशवेरा किया गया कि किसी न किसी  तरह इन इख्तिलाफात को खत्म किया जाए. उस में यह तय पाया कि सारी इन्जीलों में से चार इन्जीलों को ले लिया जाए और उन ही को सही माना जाए और बाक़ी जिन कि कोई हद और हुदूद नहीं थी उनको अमान्य और झूठा घोषित कर दिया जाए. इस तरह इन्जील में ईसा मसीह के कत्ल न किये  जाने वली बात को ख़ारिज कर दिया गिया और अनौपचारिक घोषित कर दिया गया.[1] 
  २. ईसाइयत के नाकाफ़ी होने का प्रमाण और दलील. मौजूदा इन्जील की बातों में एक दुसरे की विपरीत और उल्टा होना और उनमें विकृतिऔर छेड़ छाड़ होना है. इस बारे में ज़्यादा मालूमात के लिए अल्लमा शेरानी[2]  की किताब “ राहे सआदत”, फ़ाज़िल हिंदी की कितबा”इजहारूल  हक़ ” और शहीद हाश्मी निजाद की कितबा” क़ुआन व किताबी हाई आसमानिए दीगर” को देखें.
३. तीसरा प्रमाण और दलील, ईसाइयत के कुछ अक़ीदे और बातें अक्ल और मंतिक़(तर्क और बुद्धि ) के खिलाफ हैं. जैसे उनका मानना है की ख़ुदा का बेटा इन्सान की सूरत में आया, इन्सान के गुनाहों को अपने उपर ले लिया और सूली पर चढ़ कर और तकलीफ सह कर इंसानों के गुनाहों की भरपाई की. इन्जील योहन्ना में यूँ लिखा है : चूँकि ख़ुदा, इस जहान और दुनिया से बहुत मुहब्बत करता है इस लिए उस ने अपने इकलौते बेटे को भी कुर्बान कर दिया. बल्कि उसको अमर कर दिया; ताकि जो कोई भी उस पर ईमान लाये वो हलाक न होस के बल्कि वह भी अमर हो जाए. क्यूंकि ख़ुदा ने अपने बेटे को इस दुनिया में फैसले करने के लिए नहीं बल्कि उसके ज़रिये दुनिया को नजात देने के लिए भेजा था.[3]
यहूदियत के बारे में भी इसी तरह की शंकाएं पाई जाती हैं. क्योंकि पहले यह की खुद तौरात के तीन नुस्ख़े हैं: 
१. इब्रानी नुस्खा जो यहोदियों और प्रोटेस्टेंट विद्वानों के समीप मान्य है.
२. सामरी नुस्खा जो सामरियों(बनी इस्राईल का दूसरा गिरोह ) के समीप मान्य  है.
३.वह नुस्खा जिसको ग़ैर प्रोटेस्टेंट यूनानी  विद्वान मोतबर मानते हैं.
    सामरियों के नुस्ख़े में सिर्फ मूसा (अ) की पांच किताबें, युषा और
 न्यायाधीशों की पुस्तकें शामिल हैं. वह लोग पुराना नियम ( Old Testament) की की किताबों को मोतबर नहीं मानते हैं.  हज़रत आदम (अ) से लेकर नूह (अ) के तूफ़ान तक का समय पहले नुस्ख़े में १६५६ साल, दूसरे नुस्ख़े में १३०७ साल और तीसरे नुस्ख़े में १३६२ साल लिखा है. जबकि तीनों नुस्ख़े सही नहीं हो सकते उनमें से सिर्फ एक ही सही होगा और इन में से कौन सा सही है यह मालूम नहीं है.[4] 
दुसरे यह कि: तौरात में भी ऐसी बातें मौजूद हैं जिन्हें इन्सान की अक्ल कबूल नहीं करती है.
मिसाल के तौर पर तौरात में ख़ुदा को इनसान की तरह बताया गया जो रास्ता चलता है, गाना गाता है और झूठा और धोकेबाज़ है.(माज़ अल्लाह)क्योंकि उसने आदम व हव्वा से कहा था कि अगर अच्छाई और बुराई के पेड़ से कुछ खाएंगे तो वह मर जाएँ गे जबकि आदम व हव्वा उस पेड़ का फल खाने के बाद ना सिर्फ नहीं मरे बल्कि अच्छाइयों और बुराइयों को भी जान गए.[5]
ख़ुदा के साथ हजरते याकूब (अ) के कुश्ती लड़ने की कहानी जो तौरात में आई है.[6]
२. इसलाम की सच्चाई और उसके सर्वश्रेष्ठ होने के प्रमाण और दलीलें
१. इस्लाम धर्म के चमत्कार (मोजिज़ा) का अब तक बाक़ी रहना; क्योंकि इस धर्म का मोजिज़ा क़ुआन है जो किताब, तर्क और ज्ञान में से है. जबकि उसके विपरीत  पिछले नबियों के मोजिज़े महसूस प्रकार के थे. इसलिए यह  क़ुआन हर दौर में जिंदा और बाक़ी रहा है और हज़रत मोहम्मद से के समय तक ही महदूद नहीं है. इसीलिए इस्लाम का मोजिज़ा और चमत्कार जिंदा और बाकी रहने वाला है.
इस के अलावा समय समय पर क़ुआन दूसरों को चुनौतो देता रहा है कि उसका जवाब ले आओ: “और अगर तुम लोग इस कलाम से जो हमने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर नाज़िल किया है शक में पड़े हो तो  अगर तुम सच्चे हो तो तुम (भी) उसकी तरह का एक सूरा बना लाओ ”[7]
२. क़ुआन में विकृति और छेड़ छाड़ ना होना; यानि उसमें कोई बदलाओ और तब्दीली नहीं हुई है.
 क्योंकि अल्लाह के उस वादे के अलावा की हम क़ुरआन की हिफाज़त करेंगे,[8] खुद हज़रत मोहम्मद(स) ने भी उसकी हिफाज़त का इस तरह इन्तिज़ाम किया था :
पहले यह कि:  जो लोग कातिबाने वही(वही को लिखने वाले) थे उनको हुक्म दिया था कि हर हर आयत और सूरे को लिखें.
दुसरे यह कि: अपने असहाब और दोस्तों को कुराआन याद करने की ताकीद करते थे इस तरह खुद नबी (स) के समय में एक बड़ी संख्या ऐसे मुसलमानों की थी जिन्हें पूरा क़ुरआन हिफ्ज़ यानी याद था. तीसरे यह कि : क़ुआन पढने के लिए प्रोत्साहित करते थे; यानी क़ुआन को उसके तरीक़े (तज्वीद) के अनुसार पढने को कहते ना की सिर्फ उसके मतलब को समझ लें.[9]
इस वजह से क़ुरआन हर तरह की विकृति और छेड़ छाड़ से सुरक्षित है.
३. इस्लाम की सच्चाई को साबित प्रमाणित करने का तीसरा रास्ता पैग़म्बर (स) का आखरी नबी होना(खातिमियत) है, क्योंकि इसलाम की धार्मिक किताब[10] में ताकीद की गई है की हज़रत मुहम्मद (स) आखरी पैग़म्बर हैं और उनके बाद कोई नबी नहीं आएगा.
और हर इंसानी समाज में यही आखरी क़ानून(शरीअत) लागू होगा और इसी पर अमल करना अनिवार्य होगा. और नए क़ानून के आजाने के बाद पुराने क़ानून अपने आप रद्द और अमान्य हो जाते हैं. 
दुसरे धर्मों की किताबों में यह नहीं आया है कि उनका नबी अल्लाह का आखरी  नबी था, बल्कि उन नबियों ने अपने मानने वालों को किसी न किसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम के आने की खुशखबरी ज़रूर दी है;[11] यानि अपने अअस्थायी होने का एलान किया है.
४. चौथी बात जिस पर ध्यान देना ज़रूरी है वह इस्लाम की व्यापकता है  कि इस्लाम में रूहानी, ज़ेहनी, व्यक्तिगत और सामाजिक, भौतिक और और आध्यात्मिक जैसे ज़िन्दगी के हर मसले के लिए शिक्षाएं मौजूद हैं. इस्लाम की व्यापकता और उसकी श्रेष्ठता को बेहतर तौर पर समझने के लिए दुसरे धर्मों के ग्रन्थों और इस्लामी ग्रन्थ का होना का तुलनात्मक अध्ययन होना 
चाहिए . इस सूरत में आस्था (एतेक़ादी), तौहीद और अल्लाह के सिफात, व्यक्तिगत और सामाजिक नैतिकता, कानून, अर्थव्यवस्था, सियासत व हुकूमत व ... जैसे सारे मसलों में इस्लामी शिक्षाओं की व्यापकता और श्रेष्ठता मालूम होजाती है.
५. पांचवें यह कि; इस समय मौजूदा धर्मों में से सब से सही और जिंदा इतिहास इस्लाम का है कि इसके इतिहासकारों ने पैग़म्बर (स) के बचपन तक की  छोटी से छोटी बातों को लिखा है जबकि दुसरे धर्मों का कोई प्रामाणिक और मोतबर इतिहास मौजूद नहीं है.यही वजह है कि कुछ पच्छिमी विचारक ईसा मसीह (अ) के होने के बारे में भी शक करते हैं और अगर हम मुसलमानों के क़ुरआन ने हज़रत मसीह (अ) और दुसरे नबियों के बारे में न बताया होता तो शायद ईसाई और यहूदी धर्म इस तरह इंसानी समाज में मौजूद ना होते.[12]  
 

[1]. शेरानी, अबुलहसन, राहे सआदत ,प,१८७,१८८,१९७,२२१
[2] . पिछला
[3] . इन्जील योहन्ना,३, १६-१७
[4] . राहे सआदत, प,२०६ व २०७
[5] .तौरात, सफर ए पैदाइश, बाब २ व ३
[6] . पिछला,बाब २१, आयत २४
[7]. बकरा/२३
[8] . हीज्र/९
[9] . राहे सआदत, प २२,२१५, २४, २५,
[10] .अहज़ाब/४०  - सही बुख़ारी ,ज ४, प२५०
[11]. राहे सआदत, प २२६-२४१; इन्जील योहन्ना २१,४१
[12] . मजमुए आसार ज १६, प ४४ .
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